वो गलियों का क्रिकेट
वो मैदाने मोहहाला
वो दीवार पर विकटे
वो टूटा सा बल्ला
ना कोई जीत का लालच
ना गम की हार
जो टूटा काँच
तो तू आउट है यार ||
जो हुआ अंधेरा
तो मैच खतम
तेरी बैटिंग अब कल होगी यार
मिला के पैसे सब लाते थे बाॅल
वो पल बहुत आते है याद ||

जो गई नाली में
मिले दो रन
बैटिंग को लेकर अक्सर अंबन
पता ना चले कब शाम हो जाए
बहुत सुहाना था बचपन ||
वो आंटी की गलियाँ
वो मम्मी की मार
वो सीशा पड़ोशी का
जब टूटे हर बार
कुछ पल को थम के
फिर मैच सुरू
हमने कहा मानी थी हार
काश मिले वो गलिया
वो मैदान दोबारा भी
तोडू काँच मै फिर खिड़की के
और मार पड़े दोबारा भी ||
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